हनुमान चालीसा - 17
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हनुमान चालीसा की १२वीं चौपाई में भगवान राम, अपने परम भक्त हनुमानजी के प्रति उनके अद्धभुत कार्य के लिए अपनी अत्यंत प्रसन्नता जाहिर करते हैं। वे केवल उन्हें अपने गले से ही नहीं लगते हैं बल्कि शब्दों से भी खूब तारीफ़ करते हैं। महान लोगों की तारीफ ही हमें प्रसन्न करनी चाहिए। यह भी देखने योग्य है की सभी भक्त अपने भगवान् को प्रसन्न करने के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं - पूजा, नैवेद्य, तपस्या, सेवा, दान आदि आदि लेकिन यह प्रसंग हमें दिखाता है की भगवान कैसे प्रसन्न होते हैं। वे प्रसन्न होते हैं ऐसे सेवा से जिसमे हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ, सुख-दुःख की चिंता न करते हुए किसी सत-कार्य के लिए अपने को दिलोजान से समर्पित कर पाएं। रामजी यहाँ तक कहते हैं की हे हनुमान तुम तो हमें भरत के समान प्रिय हो। रामजी के लिए यह वचन अपनी प्रसन्नता को अभिव्यक्त करने की परा काष्ठ थी।